श्री गणेशाय नमः - Maha Upanishad - महा उपनिषद हृदय से निरंतर एक कोमल ध्वनि निकलती रहती है। उसके मध्य में एक महान ज्वाला प्रज्वलित हो रही है, जो दीपक की लौ के समान पूरे विश्व को प्रकाशित कर रही है। उस ज्वाला के मध्य में थोड़ी ऊपर उठी हुई एक पतली अग्निशिखा स्थित है। उस अग्निशिखा के केंद्र में परमात्मा का निवास है। इस महा उपनिषद में दो महान ऋषि की कथा द्वारा उपदेश दिया जा रहा है। जीवन्मुक्ति और विदेहमुक्तिका स्वरूप शुक नामक एक महातेजस्वी मुनीश्वर थे। वे निरंतर आत्मिक आनंद का अनुभव करने में लगे रहते थे। उन्होंने उत्पन्न होते ही सत्यकी, तत्त्वज्ञानकी प्राप्ति की। इसीलिए उन महान शुकदेव जी ने अपने विवेक से, बिना किसी उपदेश के, लंबे समय तक विचार कर आत्मा के स्वरूप को समझ लिया। आत्मा का स्वरूप इतना सूक्ष्म है कि उसे शब्दों से समझ पाना कठिन है। यह आत्मा मन और इंद्रियों से परे, बहुत सूक्ष्म, केवल चेतना के रूप में मौजूद है। यह आत्मा आकाश से भी अधिक सूक्ष्म है। इस सूक्ष्म आत्मा के भीतर, अनगिनत ब्रह्मांड रूपी कण शक्ति क्रमसे उत्पन्न और स्थित होकर विलीन होती रहती ह...
श्री गणेशाय नमः - Sri Ram Uttara Tapaniya Upanishad - श्रीरामोत्तरतापनीयोपनिषद् बृहस्पति जी ने याज्ञवल्क्य रिशी से पूछा-‘ब्रह्मन्! जिस तीर्थके सामने कुरुक्षेत्र भी छोटा लगे, जो देवताओंके लिये भी देव-पूजनका स्थान हो, जो सभी प्राणियोंके लिये परमात्मप्राप्तिका स्थान हो, वह कौनसा है?’ याज्ञवल्क्य रिशी ने उत्तर दिया-‘निश्चित रूप से अविमुक्त तीर्थ अथार्थ काशी ही मुख्य सत्कर्मका स्थान है।वही देवताओंके लिये भी पूजा का स्थान है। वही सभी प्राणियोंके लिये परमात्मा प्राप्त करनेका स्थान है। यहीं जीवके प्राण निकलते समय भगवान् रुद्र तारक-ब्रह्मका ज्ञान देते हैं, जिससे वह अमृतमय होकर मोक्ष प्राप्त कर लेता है। इसलिये अविमुक्त काशी का ही आदर करे। काशी तीर्थका कभी त्याग न करो। तदनन्तर भरद्वाज रिशी ने पूछा-‘भगवन्! कौन तारक अथार्थ पार करानेवाला है और कौन पार होता है?’ इस प्रश्नके उत्तरमें याज्ञवल्क्य मुनि बोले- “राम रामाय नमः” यह तारक-मन्त्र है। इसके अलावा “राम चन्द्राय नमः” और “राम भद्राय नमः” ये दो मन्त्र भी तारक-मन्त्र हैं। ये तीन मन्त्र क्रमशः ॐकार स्वरूप, तत्स्वरूप और ब्रह्म स...